श्री  श्री रवि शंकर के अनमोल  विचार

श्री  श्री रवि शंकर के अनमोल  विचार

श्री  श्री रवि शंकर के अनमोल  विचार-

श्री श्री रवि शंकर जी भारत के महान आध्यात्मिक व्यक्ति हैं रवि शंकर जी ने 1981 में आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन की स्थापना की थी इस संस्था का उद्देश्य व्यतिगत तनाव और समाजिक परेशानियों एवं हिंसा से समाज को मुक्त करना है। श्री श्री रवि शंकर जी नें 1977 में जिनेवा में  चैरिटी, इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर ह्यूमन वैल्यूज, एक गैर सरकारी संगठन की स्थापना की जिसका कार्य राहत और ग्रामीण विकास कार्य है और इस संस्था का लक्ष्य वैश्विक मूल्यों को बढ़ावा देना है।

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रवि शंकर महराज की सेवा भाव से प्रेरित होकर उन्हे भारत, पेरू, कोलम्बिया, और पराग्वे समेत दुनिया के अन्य कई देशों ने अपने देश के उच्च पुरस्कारों से सम्मानित किया हुआ है। श्री श्री रवि शंकर को भारत सरकार ने 2016 में पद्म विभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया था।

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श्री  श्री रवि शंकर के अनमोल  विचार-

तुम्हारा मस्तिष्क भागने की सोच रहा है और उस अस्तर पर जाने का प्रयास नहीं कर रहा है जहाँ गुरु ले जाना चाहते हैं,  तुम्हे उठाना चाहते हैं।  

 

चाहत, या इच्छा तब पैदा होती है जब आप खुश नहीं होते क्या आपने देखा है?  जब आप बहुत खुश होते हैं तब संतोष  होता  है संतोष का अर्थ है कोई इच्छा ना होना।  

 

इच्छा हमेशा मैं पर लटकती रहती है जब स्वयं मैं लुप्त हो रहा हो, इच्छा भी समाप्त हो जाती है, ओझल हो जाती  है।  

 

हर एक चीज के पीछे तुम्हारा अहंकार है मैं , मैं , मैं , मैं लेकिन सेवा में कोई मैं नहीं है,  क्योंकि यह किसी और के लिए करनी होती है।  

 

दूसरों को आकर्षित करने में काफी उर्जा बर्वाद होती है और दूसरों को आकर्षित करने की चाहत में – मैं बताता हूँ,  विपरीत  होता  है।  

 

मानव विकास के दो चरण हैं- कुछ होने से कुछ ना होना; और कुछ ना होने से सबकुछ होना यह ज्ञान दुनिया भर में योगदान और देखभाल ला सकता है।

 

जब आप अपना दुःख बांटते हैं,  वो कम नहीं होता जब आप अपनी ख़ुशी बांटने से रह जाते हैं, वो कम हो जाती है अपनी समस्याओं को सिर्फ ईश्वर से सांझा करें,  और किसी से नहीं, क्योंकि ऐसा करना सिर्फ आपकी समस्या को बढ़ाएगाअपनी ख़ुशी सबके साथ बांटें।

 

दूसरों को सुनो;  फिर भी मत सुनो अगर तुम्हारा दिमाग उनकी समस्याओं में उलझ जाएगा, ना सिर्फ वो दुखी होंगे, बल्कि तुम भी दुखी हो जओगे।

 

जीवन ऐसा कुछ नहीं है जिसके प्रति बहुत गंभीर रहा जाए जीवन तुम्हारे हाथों में खेलने के लिए एक गेंद है गेंद को पकड़े मत रहो।

 

हमेशा आराम की चाहत में,  तुम आलसी हो जाते हो हमेशा पूर्णता की चाहत में तुम क्रोधित हो जाते होहमेशा अमीर बनने की चाहत में तुम लालची हो जाते हो।

 

अपने कार्य के पीछे की मंशा कोदेखो अक्सर तुम उस चीज के लिए नहीं जाते जो तुम्हे सच में चाहिए।  

 

यदि तुम लोगों का भला करते हो, तुम अपनी प्रकृति की वजह से करते हो।  

 

स्वर्ग से कितना दूर?  बस अपनी आँखें खोलो और देखो तुम स्वर्ग में हो।  

 

प्रेम कोई भावना नहीं है यह आपका अस्तित्व है।

 

तुम दिव्य हो तुम मेरा हिस्सा हो मैं तुम्हारा हिस्सा हूँ।  

 

तुम्हे सर्वोच्च आशीर्वाद दिया गया है , इस गृह का सबसे अनमोल ज्ञान दिया गया है तुम  दिव्य  हो ; तुम परमात्मा का हिस्सा हो विश्वास के साथ बढ़ो यह अहंकार नहीं है यह  पुनः प्रेम  है।  

 

बुद्धिमान वो है जो औरों की गलती से सीखता है थोडा कम बुद्धिमान वो है जो सिर्फ अपनी गलती से सीखता हैमूर्ख एक ही गलती बार बार दोहराते रहते हैं और उनसे कभी सीख नहीं लेते।

 

श्रद्धा यह समझने में है कि आप हमेशा वो पा जाते हैं जिसकी आपकी ज़रुरत होती है।

 

“आज” भगवान का दिया हुआ एक उपहार है- इसीलिए इसे “प्रेजेंट” कहते हैं।

 

मैं आपसे बताता हूँ, आपके भीतर एक परमानंद  का फव्वारा है, प्रसन्नता का झरना है आपके मूल के भीतर सत्य, प्रकाश, प्रेम है, वहां कोई अपराध बोध नहीं है, वहां कोई डर नहीं है मनोवैज्ञानिकों ने कभी इतनी गहराई में नहीं देखा।