स्वामी दयानंद सरस्वती के अनमोल विचार

स्वामी दयानंद सरस्वती के अनमोल विचार

स्वामी दयानंद सरस्वती जी का जन्म गुजरात राज्य के टंकारा नामक स्थान पर 12 फरवरी 1824 को हुआ था। स्वामी दयानंद सरस्वती जी के बचपन का नाम मूल शंकर था और स्वामी दयानंद सरस्वती जी भगवान शिव की आराधना करते थे। स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने जब वैराग्य धारण किया तो वो सच्चे गुरु को खोजने के लिए निकल पड़े और फिर विरजानंद जी आश्रम में जा पहुंचे और गुरु को पुकारा और अंदर से कोई बोला कौन है ? तो स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने कहा इसी का पता लगाने के लिए मैं यहाँ पर आया हूँ कि मैं कौन हूँ?

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स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने विरजानंद जी को अपना गुरु बना लिया। स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने 1874 में आर्य समाज की स्थापना की थी। स्वामी जी ने वेदों का अध्ययन किया और लोगों को वेदों के बारे में शिक्षा प्रदान किया। स्वामी दयानंद सरस्वती जी  ने समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने का प्रयास किया।  समाज में उस समय छुआछूत, स्त्रियों को वेद पढ़ने की अनुमति ना होना, सती प्रथा, विधवा पुनर्विवाह ना होना आदि बहुत सी बुराइयों को विरोध करके उन्हे दूर करने का प्रयास किया।

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स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने सत्यार्थप्रकाश नामक एक पुस्तक भी लिखी, जिसमे स्वामी जी ने लिखा था  “ माता पिता के समान न्याकारी विदेशी राज्य कभी पूर्ण सुखकारी नहीं हो सकता है”। स्वामी दयानंद सरस्वती जी की मृत्यु 30 अक्टूबर 1883 को जहर खाने से हो गई और वे सदा के लिए अमर हो गये। स्वामी दयानंद सरस्वती जी के सिद्धांत हमेशा के लिए अमर रहेंगे और लोग द्वारा अनुसरण किये जायेंगे। 

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अनमोल विचार

- किसी भी रूप में प्रार्थना प्रभावी है क्योंकि यह एक क्रिया है इसलिए, इसका परिणाम होगा यह इस ब्रह्मांड का नियम है जिसमें हम खुद को पाते हैं।

- लोगों को कभी भी चित्रों की पूजा नहीं करनी चाहिए मानसिक अन्धकार का फैलाव मूर्ति पूजा के प्रचलन की वजह से है।

- वह अच्छा और बुद्धिमान है जो हमेशा सच बोलता है, धर्म के अनुसार काम करता है और दूसरों को उत्तम और प्रसन्न बनाने का प्रयास करता है।

- वर्तमान जीवन का कार्य अन्धविश्वास पर पूर्ण भरोसे से अधिक महत्त्वपूर्ण है।

- निरीह सुख सद गुणों और सही ढंग से अर्जित धन से मिलता है।

- जीह्वा को उसे व्यक्त करना चाहिए जो ह्रदय में है।

- उपकार बुराई का अंत करता है, सदाचार की प्रथा का आरम्भ करता है, और  लोक-कल्याण तथा सभ्यता में योगदान देता है।

- भगवान का ना कोई रूप है ना रंग है वह अविनाशी और अपार है जो भी इस दुनिया में दिखता है वह उसकी महानता का वर्णन करता है।

- आत्मा अपने स्वरुप में एक है, लेकिन उसके अस्तित्व अनेक हैं।

- नुक्सान से निपटने में सबसे ज़रूरी चीज है उससे मिलने वाले सबक को ना भूलना वो आपको सही मायने में विजेता बनाता है।

- इंसान को दिया गया सबसे बड़ा संगीत यंत्र आवाज है।

- लोग कहते हैं कि वे समझते हैं कि मैं क्या कहता हूं और मैं सरल हूं मैं सरल नहीं हूँ, मैं स्पष्ट हूं।

- दुनिया को अपना सर्वश्रेष्ठ दीजिये और आपके पास सर्वश्रेष्ठ लौटकर आएगा।

- कोई मूल्य तब मूल्यवान है जब मूल्य का मूल्य स्वयम के लिए मूल्यवान हो।

- लोगों को भगवान् को जानना और उनके कार्यों की नक़ल करनी चाहिए पुनरावृत्ति और औपचारिकताएं किसी काम की नहीं हैं।

- अज्ञानी होना गलत नहीं है, अज्ञानी बने रहना गलत है।

- अपने सामने रखने या याद करने के लिए लोगों की तसवीरें या अन्य तरह की पिक्चर लेना ठीक है लेकिन भगवान् की तसवीरें और छवियाँ बनाना गलत है।

- मोक्ष पीड़ा सहने और जन्म-मृत्यु की अधीनता से मुक्ति है, और यह भगवान की अपारता में स्वतंत्रता और प्रसन्नता का जीवन है।

- धन एक वस्तु है जो ईमानदारी और न्याय से कमाई जाती है इसका विपरीत है अधर्म का खजाना।

- सबसे उच्च कोटि की सेवा ऐसे व्यक्ति की मदद करना है जो बदले में आपको धन्यवाद कहने में असमर्थ हो।

- आप दूसरों को बदलना चाहते हैं ताकि आप आज़ाद रह सकें लेकिन, ये कभी ऐसे काम नहीं करता दूसरों को स्वीकार करिए और आप मुक्त हैं।

- जो व्यक्ति सबसे कम ग्रहण करता है और सबसे अधिक योगदान देता है वह परिपक्कव है, क्योंकि जीने मेंही आत्म-विकास निहित है।

- अगर आप पर हमेशा ऊँगली उठाई जाती रहे तो आप भावनात्मक रूप से अधिक समय तक खड़े नहीं हो सकते।

- गीत व्यक्ति के मर्म का आह्वान करने में मदद करता है और बिना गीत के, मर्म को छूना मुश्किल है।

- प्रबुद्ध होना- ये कोई घटना नहीं हो सकती जो कुछ भी यहाँ है वह अद्वैत है ये कैसे हो सकता है?  यह स्पष्टता है।