भगवान बुद्ध के प्रसिद्द प्रेरक कथन व विचार

भगवान बुद्ध के प्रसिद्द प्रेरक कथन व विचार

भगवान बुद्ध के प्रसिद्द प्रेरक कथन व विचार-

महात्मा बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था और बुद्ध को गौतम के नाम से भी जाना जाता है महात्मा बुद्ध का जन्म करीब 2500 वर्ष पूर्व राजा शुद्धोदन के यहाँ पर हुआ था| बुद्ध जी  की माता का नाम महामाया था। बुद्ध जी का विवाह यशोधरा से हुआ था जिनसे एक पुत्र हुआ जिनका नाम राहुल था। सिद्धार्थ मन घर में नहीं लगता था। 

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एक दिन रात के समय जब सारे लोग सो रहे थे तब सिद्धार्थ उठे और अपने परिवार को छोड़कर वन की ओर चले गए और उन्होंने वन में कठोर तपस्या शुरू कर दी आखिर में वे बिहार राज्य के गया नामक स्थान पर पहुंचे जहां पर पेड़ के नीचे ध्यान लगाकर बैठ गए जहां पर इन्हे ज्ञान की प्राप्ति हुई तभी से वे सिद्धार्थ से बुद्ध हो गए और पेड़ का नाम बोधिवृक्ष हो गया।

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ज्ञान प्राप्त करने के उपरांत बुद्ध सारनाथ पहुँच गए जहां पर अपने शिष्यों को प्रथम उपदेश दिया। बौद्ध धर्म को अनेक राजाओं ने जैसे अशोक, कनिष्क और हर्ष ने अपनाया। बुद्ध जी के उपदेश आज भी बहुत प्रसिद्ध हैं आज हम आपको महात्मा बुद्ध जी कुछ उपदेश बताने जा रहे हैं तो चलिए शुरू करते हैं। 

 

भगवान बुद्ध के प्रसिद्द प्रेरक कथन व विचार-

1.चलिए ऊपर उठें और आभारी रहे, क्योंकि अगर हमने बहुत नहीं तो कुछ तो सीखा, और अगर हमने कुछ भी नहीं सीखा, तो कम से कम हम बीमार तो नहीं पड़े, और अगर हम बीमार पड़े तो कम से कम हम मरे नहीं; इसलिए चलिए हम सभी आभारी रहे।

2.शरीर को अच्छी सेहत में रखना हमारा कर्तव्य है…. नहीं तो हम अपना मन मजबूत और स्पष्ठ नहीं रख पायेंगे।

3.जो आप सोचते हैं वो आप बन जाते हैं।

4.हम जो कुछ भी हैं वो हमने आज तक क्या सोचा इस बात का परिणाम है. यदि कोई व्यक्ति बुरी सोच के साथ बोलता या काम करता है, तो उसे कष्ट ही मिलता है. यदि कोई व्यक्ति शुद्ध विचारों के साथ बोलता या काम करता है, तो उसकी परछाई की तरह ख़ुशी उसका साथ कभी नहीं छोड़ती।

5.हजारों खोखले शब्दों से अच्छा वह एक शब्द है जो शांति लाये

6.एक जग बूँद-बूँद कर के भरता है।

7.अगर आप वास्तव में स्वयं से प्रेम करते हैं, तो आप कभी भी किसी को ठेस नहीं पहुंचा सकते।

8.शांति अन्दर से आती है. इसे बाहर मत ढूंढो।

9.हमें हमारे सिवा कोई और नहीं बचाता. न कोई बचा सकता है और न कोई ऐसा करने का प्रयास करे. हमें खुद ही इस मार्ग पर चलना होगा।

10.अतीत पे ध्यान मत दो, भविष्य के बारे में मत सोचो, अपने मन को वर्तमान क्षण पे केन्द्रित करो।

11.स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है, संतोष सबसे बड़ा धन है, वफ़ादारी सबसे बड़ा संबंध है।

12.जैसे मोमबत्ती बिना आग के नहीं जल सकती, मनुष्य भी आध्यात्मिक जीवन के बिना नहीं जी सकता।

13.मन और शरीर दोनों के लिए स्वास्थय का रहस्य है- अतीत पर शोक मत करो, ना ही भविष्य की चिंता करो, बल्कि बुद्धिमानी और ईमानदारी से वर्तमान में जियो।

14.अंत में ये चीजें सबसे अधिक मायने रखती हैं: आपने कितने अच्छे से प्रेम किया? आपने कितनी पूर्णता के साथ जीवन जिया? आपने कितनी गहराई से अपनी कुंठाओं को जाने दिया।

15.सबसे अँधेरी रात अज्ञानता है।

16.अपने मोक्ष के लिए खुद ही प्रयत्न करें. दूसरों पर निर्भर ना रहे।

17.किसी विवाद में हम जैसे ही क्रोधित होते हैं हम सच का मार्ग छोड़ देते हैं, और अपने लिए प्रयास करने लगते हैं।

18.किसी जंगली जानवर की अपेक्षा एक कपटी और दुष्ट मित्र से अधिक डरना चाहिए, जानवर तो बस आपके शरीर को नुक्सान पहुंचा सकता है, पर एक बुरा मित्र आपकी बुद्धि को नुक्सान पहुंचा सकता है।

19.शक की आदत से भयावह कुछ भी नहीं है. शक लोगों को अलग करता है. यह एक ऐसा ज़हर है जो मित्रता ख़त्म करता है और अच्छे रिश्तों को तोड़ता है. यह एक काँटा है जो चोटिल करता है, एक तलवार है जो वध करती है।

20.सत्य के मार्ग पे चलते हुए कोई दो ही गलतियाँ कर सकता है; पूरा रास्ता ना तय करना, और इसकी शुरआत ही ना करना।

21.बुराई होनी चाहिए ताकि अच्छाई उसके ऊपर अपनी पवित्रता साबित कर सके।

22.आपके पास जो कुछ भी है है उसे बढ़ा-चढ़ा कर मत बताइए, और ना ही दूसरों से ईर्ष्या कीजिये. जो दूसरों से ईर्ष्या करता है उसे मन की शांति नहीं मिलती।

23.घृणा घृणा से नहीं प्रेम से ख़त्म होती है, यह शाश्वत सत्य है।

24.वह जो पचास लोगों से प्रेम करता है उसके पचास संकट हैं, वो जो किसी से प्रेम नहीं करता उसके एक भी संकट नहीं है।

25.बिना सेहत के जीवन जीवन नहीं है; बस पीड़ा की एक स्थिति है- मौत की छवि है।

26.हर चीज पर सन्देह करो. स्वयं अपना प्रकाश ढूंढो।

27.क्रोध को पाले रखना गर्म कोयले को किसी और पर फेंकने की नीयत से पकड़े रहने के सामान है; इसमें आप ही जलते हैं।

28.मैं कभी नहीं देखता कि क्या किया जा चुका है; मैं हमेशा देखता हूँ कि क्या किया जाना बाकी है।

29.जो बुद्धिमानी से जिए हैं उन्हें मृत्यु का भी भय नहीं होना चाहिए।

30.पवित्रता या अपवित्रता अपने आप पर निर्भर करती है, कोई भी दूसरे को पवित्र नहीं कर सकता।