भगवान् महावीर स्वामी के अनमोल वचन

भगवान् महावीर स्वामी के अनमोल वचन

भगवान् महावीर स्वामी के अनमोल वचन-
जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी जी जा जन्म करीब 2600 वर्ष पूर्व वैशाली बिहार में हुआ था महावीर स्वामी के पिता का नाम सिद्धार्थ और माता का नाम त्रिशला था माता पिता ने इनक नाम वर्धमान रखा था। वर्धमान बचपन में बहुत होनहार थे इनको संसारिक सुखों से किसी प्रकार का लगाव नहीं था और एकांत में रहना पसंद करते थे एक बार उन्होंने अपने मनोबल से एक जहरीले सांप और हाथी को अपने वश में कर लिया था। जब महावीर स्वामी की उम्र 28 वर्ष की थी तभी इनके पिता जी का देहांत हो गया पिता के देहांत ने इनपर गहरा प्रभाव डाला दो वर्ष के बाद 30 साल की उम्र में महावीर स्वामी ने घर और राज पाट को त्यागकर जंगल में तपस्या करने के लिए चले गए और कठिन तपस्या के बाद इनको ज्ञान की प्राप्ति हुई। 


महावीर स्वामी ने गाँव-गाँव नगर-नगर भ्रमण करके जैन धर्म का प्रचार प्रसार किया महावीर स्वामी ने लोगों को आचरण,खान पान में पवित्रता और सभी प्राणियों के प्रति दया भाव रखने की शिक्षा प्रदान की जैन धर्म को मानने वाले लोगों को जैनी जाना जाता है जैन धर्म के प्रमुख उपदेश इस प्रकार हैं-
सत्य पर चलना, चोरी न करना, आवश्यकता से अधिक धन संग्रह न करना, अहिंसा, शुद्ध आचरण इस सिद्धांतों को अपनाकर मनुष्य मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है। 72 वर्ष की आयु में बिहार राज्य के पावापुरी नामक स्थान पर महावीर स्वामी जी निर्वाण हो गया। 

 

भगवान् महावीर स्वामी के अनमोल वचन-

1.साधक ऐसे शब्द बोलता है जो नपे-तुले हों और सभी जीवित प्राणियों के लिए लाभकारी हों।  

2.भिक्षुक (संन्यासी) को उस पर नाराज़ नहीं होना चाहिए जो उसके साथ दुर्व्यवहार करता है। अन्यथा वह एक अज्ञानीव्यक्ति की तरह होगा। इसलिए उसे क्रोधित नहीं होना चाहिए।

3.एक चोर न तो दया और ना ही शर्म महसूस करता है, ना ही उसमे कोई अनुशासन और विश्वास होता है। ऐसी कोई बुराई नहीं है जो वो धन के लिए नहीं कर सकता है।  

4.किसी आत्मा की सबसे बड़ी गलती अपने असल रूप को ना पहचानना है,  और यह केवल आत्म ज्ञान प्राप्त कर के ठीक की जा सकती है।  

5.शांति और आत्म-नियंत्रण अहिंसा है।  

6.प्रत्येक जीव स्वतंत्र है ।   कोई किसी और पर निर्भर नहीं करता।  

7.किसी को तब तक नहीं बोलना चाहिए जब तक उसे ऐसे करने के लिए कहा न जाय उसे दूसरों की बातचीत में व्यवधान नहीं डालना चाहिए।  

8.किसी को चुगली नहीं करनी चाहिए और ना ही छल-कपट में लिप्त होना चाहिए।  

9.वाणी के अनुशासन में असत्य बोलने से बचना और मौन का पालन करना शामिल है।  

10.भगवान् का अलग से कोई अस्तित्व नहीं है ।   हर कोई सही दिशा में सर्वोच्च प्रयास कर के देवत्त्व प्राप्त कर सकता है।  

11.प्रत्येक आत्मा स्वयं में सर्वज्ञ और आनंदमय है आनंद बाहर से नहीं आता।  

12.हर एक जीवित प्राणी के प्रति दया रखो घृणा से विनाश होता है। 

13.केवल सत्य ही इस दुनिया का सार है।  

14.एक सच्चा इंसान उतना ही विश्वसनीय है जितनी माँ, उतना ही आदरणीय है जितना गुरु और उतना ही परमप्रिय है जितना ज्ञान रखने वाला व्यक्ति।  

15.किसी के सिर पर गुच्छेदार या उलझे हुए बाल हों या उसका सिर मुंडा हुआ हो, वह नग्न रहता हो या फटे-चिथड़े कपड़े पहनता हो ।   लेकिन अगर वो झूठ बोलता है तो ये सब व्यर्थ और निष्फल है।  

16.सभी जीवित प्राणियों के प्रति सम्मान अहिंसा है।  

17.सभी मनुष्य अपने स्वयं के दोष की वजह से दुखी होते हैं , और वे खुद अपनी गलती सुधार कर प्रसन्न हो सकते हैं।  

18.अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है। 

19.जो सुख और दुःख के बीच में समनिहित रहता है वह एक श्रमण है, शुद्ध चेतना की अवस्था में रहने वाला।

20.हे स्व! सत्य का अभ्यास करो, और और कुछ भी नहीं बस सत्य का।  

21.सत्य के प्रकाश से प्रबुद्ध हो, बुद्धिमान व्यक्ति मृत्यु से ऊपर उठ जाता है।  

22.एक व्यक्ति जलते हुए जंगल के मध्य में एक ऊँचे वृक्ष पर बैठा है वह सभी जीवित प्राणियों को मरते हुए देखता है लेकिन वह यह नहीं समझता की जल्द ही उसका भी यही हस्र होने वाला है वह आदमी मूर्ख है।  

23.स्वयं से लड़ो , बाहरी दुश्मन से क्या लड़ना ? वह जो स्वयम पर विजय कर लेगा उसे आनंद की प्राप्ति होगी।  

24.आपकी आत्मा से परे कोई भी शत्रु नहीं है असली शत्रु आपके भीतर रहते हैं , वो शत्रु हैं क्रोध , घमंड , लालच ,आसक्ति और नफरत।  

25.जीतने पर गर्व ना करें ना ही हारने पर दुःख।  

26.केवल वह व्यक्ति जो भय को पार कर चुका है, समता को अनुभव कर सकता है।

27.मुझे अनुराग और द्वेष, अभिमान और विनय, जिज्ञासा, डर, दु   ख, भोग और घृणा के बंधन का त्याग करने दें।  

28.खुद पर विजय प्राप्त करना लाखों शत्रुओं पर विजय पाने से बेहतर है।  

29.आत्मा अकेले आती है अकेले चली जाती है , न कोई उसका साथ देता है न कोई उसका मित्र बनता है।  

30.एक जीवित शरीर केवल अंगों और मांस का एकीकरण नहीं है, बल्कि यह आत्मा का निवास है जो संभावित रूप से परिपूर्ण धारणा (अनंत-दर्शन), संपूर्ण ज्ञान (अनंत-ज्ञान), परिपूर्ण शक्ति (अनंत-वीर्य) और परिपूर्ण आनंद है।

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