विष्णु चालीसा का पाठ करने से बढ़ता है धन, बल और सुख

विष्णु चालीसा का पाठ करने से बढ़ता है धन, बल और सुख

विष्णु चालीसा का पाठ करने से बढ़ता है धन, बल और सुख-
दोस्तों हमारे हिन्दू धर्म में कई सारे देवी और देवता मौजूद हैं जिनमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश प्रमुख हैं, कहते हैं इस संचार के निर्माणकर्ता भगवान ब्रह्म जी हैं और विष्णु जी इस संसार के पालंहर हैं और भोलेनाथ इस संसार को दुखों से दूर रखते है और मुक्ति के मार्ग को दिखाते हैं। भगवान विष्णु की कृपा यदि किसी पर होने लगती है तो उसका जीवन सुधर जाता है और उसकी सारी बाधायें दूर होने लगती हैं ,गुरुवार का दिन विष्णु जी का माना जाता है और इस दिन विष्णु चालीसा का पाठ करने से कई सारे फायदे मिलते हैं।

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जो व्यक्ति नियमित रूप से विष्णु चालीसा का पाठ करता है उसके सुख-सौभाग्य में बढ़ोत्तरी होने लगती है, इसके साथ-साथ विष्णु चालीसा का पाठ करने से  सिद्धि-बुद्धि, धन-बल और ज्ञान-विवेक की प्राप्ति होने लगती है,जो व्यक्ति विष्णु जी का उपासक होता है उसके जीवन में सुख आने लगते हैं और उसे किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता है, इसलिए हमें विष्णु चालीसा का पाठ अवश्य करना चाहिये। 

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विष्णु जी की सम्पूर्ण चालीसा-


दोहा

विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय।

कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय।

चौपाई

नमो विष्णु भगवान खरारी।

कष्ट नशावन अखिल बिहारी॥

प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी।

त्रिभुवन फैल रही उजियारी॥

सुन्दर रूप मनोहर सूरत।

सरल स्वभाव मोहनी मूरत॥

तन पर पीतांबर अति सोहत।

बैजन्ती माला मन मोहत॥

शंख चक्र कर गदा बिराजे।

देखत दैत्य असुर दल भाजे॥

सत्य धर्म मद लोभ न गाजे।

काम क्रोध मद लोभ न छाजे॥

संतभक्त सज्जन मनरंजन।

दनुज असुर दुष्टन दल गंजन॥

सुख उपजाय कष्ट सब भंजन।

दोष मिटाय करत जन सज्जन॥

पाप काट भव सिंधु उतारण।

कष्ट नाशकर भक्त उबारण॥

करत अनेक रूप प्रभु धारण।

केवल आप भक्ति के कारण॥

धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा।

तब तुम रूप राम का धारा॥

भार उतार असुर दल मारा।

रावण आदिक को संहारा॥

आप वराह रूप बनाया।

हरण्याक्ष को मार गिराया॥

धर मत्स्य तन सिंधु बनाया।

चौदह रतनन को निकलाया॥

अमिलख असुरन द्वंद मचाया।

रूप मोहनी आप दिखाया॥

देवन को अमृत पान कराया।

असुरन को छवि से बहलाया॥

कूर्म रूप धर सिंधु मझाया।

मंद्राचल गिरि तुरत उठाया॥

शंकर का तुम फन्द छुड़ाया।

भस्मासुर को रूप दिखाया॥

वेदन को जब असुर डुबाया।

कर प्रबंध उन्हें ढूंढवाया॥

मोहित बनकर खलहि नचाया।

उसही कर से भस्म कराया॥

असुर जलंधर अति बलदाई।

शंकर से उन कीन्ह लडाई॥

हार पार शिव सकल बनाई।

कीन सती से छल खल जाई॥

सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी।

बतलाई सब विपत कहानी॥

तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी।

वृन्दा की सब सुरति भुलानी॥

देखत तीन दनुज शैतानी।

वृन्दा आय तुम्हें लपटानी॥

हो स्पर्श धर्म क्षति मानी।

हना असुर उर शिव शैतानी॥

तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे।

हिरणाकुश आदिक खल मारे॥

गणिका और अजामिल तारे।

बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे॥

हरहु सकल संताप हमारे।

कृपा करहु हरि सिरजन हारे॥

देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे।

दीन बन्धु भक्तन हितकारे॥

चहत आपका सेवक दर्शन।

करहु दया अपनी मधुसूदन॥

जानूं नहीं योग्य जप पूजन।

होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन॥

शीलदया सन्तोष सुलक्षण।

विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण॥

करहुं आपका किस विधि पूजन।

कुमति विलोक होत दुख भीषण॥

करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण।

कौन भांति मैं करहु समर्पण॥

सुर मुनि करत सदा सेवकाई।

हर्षित रहत परम गति पाई॥

दीन दुखिन पर सदा सहाई।

निज जन जान लेव अपनाई॥

पाप दोष संताप नशाओ।

भव-बंधन से मुक्त कराओ॥

सुख संपत्ति दे सुख उपजाओ।

निज चरनन का दास बनाओ॥

निगम सदा ये विनय सुनावै।

पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै॥