श्री बाँकेबिहारी जी की सम्पूर्ण  चालीसा

श्री बाँकेबिहारी जी की सम्पूर्ण  चालीसा

श्री बाँकेबिहारी जी की सम्पूर्ण  चालीसा-

दोहा

बांकी चितवन कटि लचक, बांके चरन रसाल ।
स्वामी श्री हरिदास के बांके बिहारी लाल ।।

।। चौपाई ।।

जै जै जै श्री बाँकेबिहारी ।
हम आये हैं शरण तिहारी ।।
स्वामी श्री हरिदास के प्यारे ।
भक्तजनन के नित रखवारे ।।

श्याम स्वरूप मधुर मुसिकाते ।
बड़े-बड़े नैन नेह बरसाते ।।
पटका पाग पीताम्बर शोभा ।
सिर सिरपेच देख मन लोभा ।।

तिरछी पाग मोती लर बाँकी ।
सीस टिपारे सुन्दर झाँकी ।।
मोर पाँख की लटक निराली ।
कानन कुण्डल लट घुँघराली ।।

नथ बुलाक पै तन-मन वारी ।
मंद हसन लागै अति प्यारी ।।
तिरछी ग्रीव कण्ठ मनि माला ।
उर पै गुंजा हार रसाला ।।

काँधे साजे सुन्दर पटका ।
गोटा किरन मोतिन के लटका ।।
भुज में पहिर अँगरखा झीनौ ।
कटि काछनी अंग ढक लीनौ ।।

कमर-बांध की लटकन न्यारी ।
चरन छुपाये श्री बाँकेबिहारी ।।
इकलाई पीछे ते आई ।
दूनी शोभा दई बढाई ।।

गद्दी सेवा पास बिराजै ।
श्री हरिदास छवी अतिराजै ।।
घंटी बाजे बजत न आगै ।
झाँकी परदा पुनि-पुनि लागै ।।

सोने-चाँदी के सिंहासन ।
छत्र लगी मोती की लटकन ।।
बांके तिरछे सुधर पुजारी ।
तिनकी हू छवि लागे प्यारी ।।

अतर फुलेल लगाय सिहावैं ।
गुलाब जल केशर बरसावै ।।
दूध-भात नित भोग लगावैं ।
छप्पन-भोग भोग में आवैं ।।

मगसिर सुदी पंचमी आई ।
सो बिहार पंचमी कहाई ।।
आई बिहार पंचमी जबते ।
आनन्द उत्सव होवैं तबते ।।

बसन्त पाँचे साज बसन्ती ।
लगै गुलाल पोशाक बसन्ती ।।
होली उत्सव रंग बरसावै ।
उड़त गुलाल कुमकुमा लावैं ।।

फूल डोल बैठे पिय प्यारी ।
कुंज विहारिन कुंज बिहारी ।।
जुगल सरूप एक मूरत में ।
लखौ बिहारी जी मूरत में ।।

श्याम सरूप हैं बाँकेबिहारी ।
अंग चमक श्री राधा प्यारी ।।
डोल-एकादशी डोल सजावैं ।
फूल फल छवी चमकावैं ।।

अखैतीज पै चरन दिखावैं ।
दूर-दूर के प्रेमी आवैं ।।
गर्मिन भर फूलन के बँगला ।
पटका हार फुलन के झँगला ।।

शीतल भोग , फुहारें चलते ।
गोटा के पंखा नित झूलते ।।
हरियाली तीजन का झूला ।
बड़ी भीड़ प्रेमी मन फूला ।।

जन्माष्टमी मंगला आरती ।
सखी मुदित निज तन-मन वारति ।।
नन्द महोत्सव भीड़ अटूट ।
सवा प्रहार कंचन की लूट ।।

ललिता छठ उत्सव सुखकारी ।
राधा अष्टमी की चाव सवारी ।।
शरद चाँदनी मुकट धरावैं ।
मुरलीधर के दर्शन पावैं ।।

दीप दीवारी हटरी दर्शन ।
निरखत सुख पावै प्रेमी मन ।।
मन्दिर होते उत्सव नित-नित ।
जीवन सफल करें प्रेमी चित ।।

जो कोई तुम्हें प्रेम ते ध्यावें।
सोई सुख वांछित फल पावैं ।।
तुम हो दिनबन्धु ब्रज-नायक ।
मैं हूँ दीन सुनो सुखदायक ।।

मैं आया तेरे द्वार भिखारी ।
कृपा करो श्री बाँकेबिहारी ।।
दिन दुःखी संकट हरते ।
भक्तन पै अनुकम्पा करते ।।

मैं हूँ सेवक नाथ तुम्हारो ।
बालक के अपराध बिसारो ।।
मोकूँ जग संकट ने घेरौ ।
तुम बिन कौन हरै दुख मेरौ ।।

विपदा ते प्रभु आप बचाऔ ।
कृपा करो मोकूँ अपनाऔ ।।
श्री अज्ञान मंद-मति भारि ।
दया करो श्रीबाँकेबिहारी ।।

बाँकेबिहारी विनय पचासा ।
नित्य पढ़ै पावे निज आसा ।।
पढ़ै भाव ते नित प्रति गावैं ।
दुख दरिद्रता निकट नही आवैं ।।

धन परिवार बढैं व्यापारा ।
सहज होय भव सागर पारा ।।
कलयुग के ठाकुर रंग राते ।
दूर-दूर के प्रेमी आते ।।

दर्शन कर निज हृदय सिहाते ।
अष्ट-सिध्दि नव निधि सुख पाते ।।
मेरे सब दुख हरो दयाला ।
दूर करो माया जंजाल ।।

दया करो मोकूँ अपनाऔ ।
कृपा बिन्दु मन में बरसाऔ ।।

दोहा

ऐसी मन कर देउ मैं ,
निरखूँ श्याम-श्याम ।
प्रेम बिन्दु दृग ते झरें,
वृन्दावन विश्राम ।।