बाड़े की कील

बाड़े की कील

बाड़े की कील

एक समय की बात है, एक गाँव मे एक लड़का रहता था| वह लड़का बड़ा ही गुस्सैल स्वभाव का था हर छोटी-से छोटी बात पर वह लड़का तुरंत गुस्सा हो जाता था।

उस लड़के की इस आदत से तंग आकर उसके पिता ने एक दिन उसे एक थैला दिया जो की कीलों से भरा हुआ था और उसके पिता ने कहा, "अब तुम्हें जिस समय गुस्सा आए तो तुम एक कील को निकाल कर बाड़े मे ठोक देना"

पहले दिन उस लड़के के चालीस बार गुस्सा किया इसलिए उसने बाड़े मे चालीस कीलों को ठोक दिया, लेकिन धीरे-धीरे कीलों की  संख्या कम होने लगी तो उसने सोचा की कीलों को ठोंकने मे मेहनत करने से अच्छा है किअपने क्रोध पर नियंत्रण कर लिया जाए

इस प्रकार वह लड़का कुछ समय के बाद अपने गुस्से मे काबू पाना सीख गया फिर आखिर मे एक दिन ऐसा आया की उसे पूरे दिन में एक भी बार गुस्सा नहीं आया। 

फिर उसमे इस बात को अपने पिता जी के साथ साझा किया तो उसके पिता जी बोले कि "अब उस हर दिन तुम एक कील को निकाल लेना जिस दिन तुम्हें बिल्कुल गुस्सा ना आए "

लड़के ने पिता जी के कहने के अनुसार ऐसा ही किया फिर काफी दिनों के बाद एक दिन ऐसा भी आया जब उसने उस बाड़े की आखिरी कील भी निकाल ली और प्रसन्न होकर अपने पिता जी को यह बात बताई। 

तब पिता जी ने लड़के को साथ लेकर उस बाड़े के पास गये और बोले , " बेटा तुमने तो बहुत अच्छा काम किया है लेकिन क्या तुम्हें बाड़े मे हो गए छेद दिखाई दे रहें हैं अब उस बाड़े को पहले की तरह नहीं बनाया जा सकता है जैसा की वो पहले था, इसी प्रकार जब तुम गुस्सा करते हो तो तुम्हारे बोले गए शब्द भी दूसरे व्यक्ति पर गहरे घाव कर जाते है इसलिए किसी को कुछ भी बोलने से पहले सोच जरूर लेना चाहिए ताकि बोले गए शब्द की चोट ना पहुंचा सके"