भारत के प्रसिद्ध मंदिर केदार नाथ धाम का इतिहास

भारत के प्रसिद्ध मंदिर केदार नाथ धाम का इतिहास


भारत के प्रसिद्ध मंदिर केदार नाथ धाम का इतिहास-
हमारे देश में बहुत सारे मंदिर हैं और दुनिया में सबसे अधिक मंदिर भारत में ही पाए जाते हैं। आप भारत में कहीं पर हो आप मंदिर से औसतन 7 किलोमीटर आधिक दूर नहीं हो सकते हैं हर मंदिरों के पीछे कोई ना कोई कहानी जरूर जुड़ी होती हैं। भारत में करोड़ों लोग इन मंदिरों में दर्शन करने के लिए जाते हैं, मान्यता यह है इन मंदिरों में दर्शन करने से सारे पाप मिट जाते हैं और मनोकामना की पूर्ति होती हैं। 


उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से जाना जाता है इस राज्य में बहुत सारे मंदिर मौजूद हैं। प्रसिद्ध तीर्थ स्थल हरिद्वार उत्तराखंड में ही स्थित है, इसके अतिरिक्त बद्री नाथ केदारनाथ और ऋषिकेश जैसे बहुत से तीर्थस्थल यहाँ पर मौजूद हैं, लेकीन आज हम आपको उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिर केदार नाथ के बारे में बताने जा रहे हैं तो चलिये बाबा भोलेनाथ के पवित्र धाम केदार नाथ के बारे में विस्तार से जानते हैं। 

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बाबा भोले नाथ का प्रसिद्ध धाम केदारनाथ उत्तराखंड में मंदाकिनी नदी के निकट हिमालय की चोटियों के बीच में स्थित है। यह धाम बाबा शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। पहाड़ी क्षेत्र में होने के कारण यहाँ का मौसम हर समय अनुकूल नहीं रहता है इसलिए इस मंदिर को गर्मियों के सीजन में अप्रैल के आखिरी सप्ताह से लेकर नवंबर तक ही लोगों को दर्शन करने के लिए खोला जाता है। इन महीनों के दौरान लाखों की संख्या मे बाबा के भक्त उनके दर्शन करने के लिए हर साल आते हैं ,देश के कोने-कोने से लोग बाबा का आशीर्वाद प्राप्त करने आते हैं।

 

बाबा के इस धाम के निकट से मंदाकिनी नदी बहती है बाबा का यह धाम साल भर बर्फ से ढका रहता है। यहाँ का द्रश्य बहुत ही शानदार होता है और यहाँ पर शांत वातावरण और यहाँ के ऊंची-ऊंची पहाड़ों की चोटियों को देखकर लोगों का मन खुशी से झूम उठता है। लोग यहाँ पर आकर अपने आप को धन्य मानते हैं। नवंबर के बाद बाबा केदार नाथ को उखीमठ में ले जाया जाता है और फिर सर्दी के 6 महीनों तक बाबा की पूजा यहाँ पर की जाती है। बाबा भोले नाथ का यह धाम बहुत ही पुराना है यहाँ पर सालों से लोग आते चले आ रहें हैं यह स्थान हिन्दू धर्म के लोगों के लिए प्रमुख तीर्थस्थान है। 

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बाबा के धाम केदार नाथ का इतिहास-
बाबा के धाम केदार नाथ के इतिहास के पीछे सबसे प्रसिद्ध प्रमाण महाभारत से मिलता है। ऐसी मान्यता है कि पांडवों ने बाबा केदार नाथ की नींव रखी थी और इसे बनवाया भी था। परंतु बहुत समय बीत जाने के कारण यह मंदिर खंडहर में बदल गया था। केदार नाथ मंदिर को पुनः 8 वीं शताब्दी में 
आदि गुरु शंकराचार्य ने दोबारा निर्माण कराया था जो आज भी वैसे ही बना हुआ है जिसको हम केदारनाथ धाम के नाम से जानते हैं। 

 

एक बार की बात है जब महाभारत में पांडवों ने कौरवों को हत्या कर दी थी तो इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों को भोले नाथ के माफ़ी मांगने की सलाह दी थी। जब शिव के पास पांडव पहुंचे तो शिव जी ने उन्हे माफ नहीं करना चाहते थे इसलिए शिव जी अपने आप को नंदी के रूप में धारण कर लिया, और पर्वतों के बीच में जंगली जानवरों के बीच में छुप गए लेकीन पांडवों में सबसे बलशाली भाई भीम ने शंकर जी पहचान लिया फिर शिव वहाँ से गायब होने का प्रयास करने लगे लेकीन भीम ने नंदी रूप शंकर जी पुंछ को पकड़ लिया जिससे भोले जी को पांडवों को मजबूरन माफ़ी देनी पड़ी। 


जिस स्थान से भोले जी गायब हुए थे उस जगह हो गुप्तकाशी के नाम से जाता है गुप्तकाशी से गायब होने के बाद शिव जी पाँच अलग-अलग प्रकार के रूपों में प्रकट हुए केदार नाथ शिव जी के कूल्हे से निकले, रुद्रनाथ शिव जी के चेहरे से निकले, तुंगनाथ शिव जी के हाथ से निकले, मध्यमहेश्वर शिव जी 
के नाभि से और कलपेश्वर शिव के पेट से उत्पन्न हुए। यह पांचों जगह पंच केदार के नाम से जानी जाती है। 

 

केदार नाथ धाम को लेकर एक और कहानी सामने आती है जो कि भगवान विष्णु जी से जुड़ी हुई है नरायन भगवान पार्थिव की पूजा करने के लिए बद्रीका नामक गाँव में गए हुए थे फिर शिव जी नारायण जी के समक्ष प्रकट हुए नारायण भगवान ने मानव धर्म के कल्याण के लिए शिव जी विनती की 
नारायण भगवान की विनती को पूर्ण करने के लिए उस स्थान पर रहने के लिए तैयार हो गए जो आज केदार नाथ धाम के नाम से जाना जाता है। कुछ लोगों का मानना है कि आदि गुरु शंकराचार्य जी देहांत भी इसी स्थान पर हुआ था इस प्रकार बाबा केदार नाथ से जुड़ी हुई बहुत सारी बातें हैं। 

 

सन 2013 में देवभूमि उत्तराखंड में एक बहुत बड़ी तबाही आई थी, जून 2013 में पूरे उत्तराखंड के साथ केदारनाथ धाम में बादल फट जाने से भयंकर बाढ़ आई थी। बाढ़ इतनी भयंकर थी जो भी इसके सामने आ रहा था वो बाढ़ के आगोश में समा जा रहा थे बाढ़ के बहाव में बड़े बड़े पत्थर और चट्टान भी बहे चले जा रहे थे। बाबा केदारनाथ मंदिर के पीछे एक बड़ी सी चट्टान आकर फंस गई और उस भयंकर बाढ़ में बाबा के धाम को सुरक्षित रखा।