महात्मा जी की बिल्ली

महात्मा जी की बिल्ली

महात्मा जी की बिल्ली

एक बार की बात है एक महात्मा जी अपने कुछ शिष्यों के साथ जंगल मे कुटी बनाकर रहते थे, एक दिन एक बिल्ली का बच्चा रास्ते को भूल गया और वो महात्मा जी की कुटी मे आ गया।

महात्मा जी ने बिल्ली के बच्चे को दूध और रोटी खिलाया। वह बच्चा वही कुटी में रहने लगा। लेकिन बिल्ली के बच्चे के आ जाने से महात्मा जी को एक समस्या उत्पन्न हो गई जब भी शाम को महात्मा जी ध्यान के लिए बैठते तो बिल्ली का बच्चा भी उनकी गोद में आकर बैठ जाता।

इससे परेशान होकर महात्मा जी ने एक शिष्य को अपने पास बुलाया और कहा की देखो जब भी हम ध्यान के लिए बैठा करूँ तो तुम इस बच्चे को पेड़ से बांध दिया करो। अब यह नियम बन गया जब भी महात्मा जी ध्यान के लिए बैठते तो बिल्ली के बच्चे को पेड़ पर बांध दिया जाता। 

एक दिन महात्मा जी मौत हो गई तो उनका एक काबिल और सबसे प्रिय शिष्य गद्दी पर बैठने लगा। जब  भी वो गद्दी पर बैठता तो बिल्ली का बच्चा भी पेड़ पर बांध दिया जाता।

फिर एक दिन ऐसा हुआ की वो बिल्ली की भी मौत हो गई सारे शिष्यों के बीच सलाह हुई और आखिर में ये नतीजा निकला की जब तक बिल्ली पेड़ से ना बांधी जाए तब तक महात्मा जी ध्यान पर नहीं बैठेंगे। 

इस प्रकर पास के गाँव से से एक बिल्ली को लाया जाए। आखिरकार काफी मेहनत के बावजूद एक बिल्ली मिली जिसको पेड़ पर बांधने के बाद महात्मा जी ध्यान पर बैठे। 

उसके बाद ना जाने कितनी बिल्लियाँ मर गई और कितने सारे महतमा मर गए लेकिन आज भी जब तक पेड़ पर बिल्ली ना बांधी जाती तब तक महतमा जी ध्यान पर नहीं बैठते हैं। उनसे अगर पूछा जाए तो ये कहते कि ये परंपरा है और हमारे सारे पुराने महात्मा जी गलत नहीं हो सकते है, इसलिए हम अपनी परंपरा को छोड़ नहीं सकते हैं। 

दोस्तों कहीं ना कही हम सब लोगों ने भी अनेकों बिल्लियों को पाल रखा है। सैकड़ों वर्षों से हम लोगों ने कुछ अनजाने और कुछ स्वार्थी लोगों द्वारा बनाई गई परम्पराओ के जाल में फंसे हुए है। 

अब हम लोगों को अपने अंदर इन परम्पराओ और अंधविश्वासों को नहीं पनपने देना चाहिए, और अगली बार किसी भी ऐसी चीजों पर यकीन करने से पहले सोच लेना चाहिए की कही हम अनजाने में कोई अंधविश्वास को पाल तो नहीं रहें हैं।